दिल्ली की एक चलती बस में मेडिकल छात्रा के साथ हुए गैंगरेप और उसकी मौत के छह साल बीतने के बाद क्या भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के मामले कम हुए हैं, क्या महिलाएं अब ज्यादा सुरक्षित हैं?ये घटना 2012 में हुई थी. इस घटना को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिला था, जिसके चलते महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा भारत में राजनीतिक मुद्दा बना था.
इस घटना के दो साल बाद भारत में बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार बनी, सरकार का दावा है कि उसने यौन हिंसा के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं.लेकिन विपक्षी कांग्रेस पार्टी के मुताबिक इन दिनों महिलाएं सबसे ज़्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं.हालांकि, अब यौन उत्पीड़न की पीड़िताएं कहीं ज़्यादा संख्या में शिकायत दर्ज कराने सामने आ रही हैं और बलात्कार के कुछ मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान भी किया गया है.
लेकिन, महिलाओं को अब भी शिकायत दर्ज कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और न्याय के लिए भी उन्हें इंतज़ार करना पड़ रहा है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 तक के आंकड़ों के मुताबिक पुलिस के पास बलात्कार के मामले दर्ज कराने की संख्या बढ़ी है. 2012 के दिल्ली बस गैंगरेप की घटना के बाद इसमें आई तेजी को इस ग्राफ़ के जरिए देखा जा सकता है.
शिकायत दर्ज कराने की एक वजह तो लोगों में जागरूकता का बढ़ना भी है.इसके अलावा पुलिस स्टेशनों में महिला पुलिस अधिकारियों की ज्यादा तैनाती और केवल महिला पुलिसवाले थानों से भी फर्क पड़ा है.इसके अलावा आम लोगों के दबाव के चलते भी 2012 के बाद क़ानूनों में बदलाव हुए हैं.
बलात्कार की परिभाषा भी बदली है, जिसके बाद अब शरीर के किसी भी हिस्से के साथ यौन हरकत बलात्कार के दायरे में आ गया है.इसके अलावा घूरने, अश्लीलता प्रदर्शित करने और एसिड अटैक करने जैसे अपराधों में भी 2013 के बाद कठोर दंड के प्रावधान किए गए हैं.
बीते साल, 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा का प्रावधान किया गया और 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले में अधिकतम सजा को बढ़ाया गया है.हालांकि, इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि यौन हिंसा के मामले अभी भी भारत में कम दर्ज होते हैं.
एक समाचार पत्र ने 2015-2016 के आधिकारिक आपराधिक आंकड़ों और राष्ट्रव्यापी फैमली हेल्थ सर्वे की मदद से ये दर्शाया है. इस सर्वे में महिलाओं से यौन हिंसा से जुड़े अनुभवों के बारे में पूछा गया था.
सर्वे में ये देखा गया कि कई यौन उत्पीड़न के मामले अभी भी दर्ज नहीं होते, क्योंकि ज़्यादातर मामलों में उत्पीड़न करने वाला पीड़िता का पति ही होता है.यौन हिंसा की पीड़ित महिलाओं को समाज में अब भी भेदभाव और लांछन का सामना करना पड़ता है.
ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों और महिलाओं को अब भी पुलिस स्टेशन और अस्पतालों में अपमान सहना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें ना तो अच्छी मेडिकल सुविधा मिलती है और ना ही उम्दा कानूनी सहायता.
2017 में भारत की एक अदालत का फैसला इसलिए भी चर्चा में आ गया था क्योंकि अदालत ने बलात्कार पीड़िता को इसके लिए स्वयं तैयार बता दिया था और उसके बीयर पीने और कमरे में कंडोम रखने की आलोचना भी की थी.
इसके अलावा एक बड़ा सवाल ये भी है कि जब बलात्कार के मामले दर्ज हो जाएं तो क्या महिलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है?सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व वाली 2009 से 2014 की यूपीए सरकार के दौरान बलात्कार के 24 से 28 फ़ीसदी मामलों में ही सजा हुई.
इस दर में मौजूदा बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार के पहले तीन साल के दौरान कोई ख़ास अंतर नहीं दिखा है.यह भी उल्लेखनीय है कि 2018 में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, सजा की ये दर उन मामलों के लिए है जो किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं.
इस रिसर्च पेपर में कहा गया है कि भारत में बीते एक दशक में बलात्कार के जितने भी मामले दर्ज हुए हैं उनमें केवल 12 से 20 फ़ीसदी मामलों में सुनवाई पूरी हो पायी.
इस रिसर्च पेपर को लिखने वाली अनीता राज ने बताया कि बलात्कार के दर्ज मामलों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन उनकी असल चिंता सजा की घटती दर है.
बीते साल सरकार ने ये कहा कि बलात्कार के लंबित मामलों की सुनवाई के लिए वह 1000 से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करने जा रही है.
बीते साल जून में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के एक सर्वे में कहा गया कि दुनिया भर में भारत महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक देश है. इस मामले में भारत को अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया और सऊदी अरब से भी आगे बताया गया.
इस सर्वे पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, सरकार के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं ने भी इसे खारिज किया था.यह सर्वे महिला मुद्दों पर काम करने वाली दुनिया की 500 एक्सपर्ट महिलाओं की प्रतिक्रिया पर आधारित था.
भारत के कुछ विश्लेषकों ने इस भारत के कुछ विश्लेषकों ने इस सर्वे के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाए. इन लोगों के मुताबिक इस सर्वे में ना तो किसी आंकड़े का इस्तेमाल किया गया है और ना ही इसे वास्तविकता में लोगों से बात करके किया गया है.
इस सर्वे में ये भी बताया गया है कि यौन हिंसा की ठीक-ठीक पहचान कितनी मुश्किल है, ऐसे में इस समस्या की संख्या को लेकर चिंता जताई गई थी.
इसके बाद सरकार ने जवाब में कहा कि महिलाओं के लिए अब शिकायत करना कहीं ज़्यादा आसान हो गया है. लिहाजा भारत में बलात्कार के ज़्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं.
भारत सरकार ने अपने बयान में कहा, “भारत में प्रति हज़ार व्यक्ति पर बलात्कार के 0.03 मामले दर्ज हैं जबकि अमरीका में प्रति हज़ार व्यक्ति पर यह दर 1.2 है.”ऐसा जाहिर हो रहा है कि भारत का आंकड़ा 2016 में दर्ज बलात्कार के मामलों में भारत की अनुमानित जनसंख्या (2011 की जनगणना के आधार पर अनुमानित) से भाग देकर हासिल किया गया है.
जबकि अमरीकी आंकड़ा वहां के 2016 के नेशनल क्राइम सर्वे से लिया गया है जिसमें 12 साल और उससे ज़्यादा उम्र के पीड़ितों से हुआ यौन उत्पीड़न शामिल होता है.
एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि अमरीका में बलात्कार की क़ानूनी परिभाषा में भारत की तुलना में कहीं ज़्यादा तरह के अपराध शामिल होते हैं. मसलन अमरीका में पुरुष और महिला दोनों बलात्कार पीड़ित हो सकते हैं और वैवाहिक संबंधों में भी बलात्कार हो सकता है.
जबकि भारतीय क़ानून के मुताबिक, मौजूदा समय में केवल महिलाएं ही बलात्कार पीड़ित हो सकती है. इसके अलावा अगर पत्नी 16 साल से ज़्यादा उम्र की हुई तो पुरुष का अपनी पत्नी से जबरन संबंध बनाना भी बलात्कार के दायरे में नहीं आएगा.ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भी यह एक मुद्दा बन जाए.
सरोज सिंह
बीबीसी से साभार